इस विषय के तहत भारतीय समाज में किसानों की स्थिति तथा भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानों की भूमिका को खत्म करने के प्रयास से संबंधित समस्याओं के बावजूद किसान आधारित रचनात्मकता (सृजन के सभी क्षेत्रों) के ह्रास के कारणों को जानने का प्रयास करेंगे. लगभग भारतीय भाषाओं में गिने-चुने रचनाओं के आधार पर लेखकों-विचारकों की संतुष्टि इस विषय पर लेखन की मांग को पूर्ण नहीं करता है. किसान आन्दोलनों की समस्याएं, अनाज की उपलबध्ता की समस्या तथा जमीन की समस्याओं का लगातार बढ़ना और इन विषयों पर लेखकों की उदासीनता कहीं न कहीं उन प्रवृतियों को बढ़ावा देता है जो इस समुदाय को खत्म करने पर आमादा है. सृजन के क्षेत्र के साथ-साथ पिछले 30-40 वर्षों में ‘फाँस’ के अतिरिक्त न तो कोई ठोस रचनाएँ ही देखने को मिलती है और न ही आलोचनाओं में इसकी मांग उठती है. दुनियाँ भर के पुरस्कारों में भी शायद ही यह देखने को मिला हो कि किसी ऐसी रचना को पुरस्कृत किया गया हो जो किसान आधारित रचना हो.
‘सारस’ के पहले अंक में हम साहित्य में किसानों की मौजूदगी, किसान समस्याओं पर लेख-विचार, कहानी, कविता, गज़ल तथा किसान आधारित फिल्मों पर लेख, समीक्षा, रिपोर्ट, संस्मरण लिखने के लिए आपको आमंत्रित करते हैं ताकि इस महत्वपूर्ण विषय पर हम एक रचनात्मक बहस का माहौल तैयार कर सकें.
सभी रचनाएँ 30 जून 2017 तक पत्रिका के मेल पर भेज दें.
(पत्रिका जुलाई में ISNN नं के साथ प्रकाशित होगी)
संपर्क:- 07447376242, 9312179624.
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